Heero ka heera
आज सवेरे ही से गुलाबदेई काम में लगी हुई है। उसने अपने मिट्टी के घर के आँगन को गोबर से लीपा है, उस पर पीसे हुए चावल से मंडन माँडे हैं। घर की देहली पर उसी चावल के आटे से लीकें खैंची हैं और उन पर अक्षत और बिल्वपत्र रक्खे Continue Reading »
No Commentsguru mata ka ashirwad
पश्चिम के लिए निकलने से पहले स्वामी विवेकानंद अपनी गुरुमाता (स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पत्नी) शारदा देवी का आशीर्वाद लेने गए। विवेकानंद पहली बार संवामी रामकृष्ण का संदेश लेकर अमेरिका जा रहे थे। विवेकानंद जब पहुंचे, उस समय गुरुमाता रसोई-घर में खाना बना रही थीं। विवेकानंद ने गुरुमाता के चरण Continue Reading »
No Commentsprayshchit
दफ्तर में ज़रा देर से आना अफ़सरों की शान है। जितना ही बड़ा अधिकारी होता है, उतनी ही देर में आता है; और उतने ही सबेरे जाता भी है। चपरासी की हाज़री चौबीसों घंटे की। वह छुट्टी पर भी नहीं जा सकता। अपना एवज देना पड़ता हे। खैर, जब बरेली Continue Reading »
No Commentsbalak
बचपन से ही भय किसे कहते हैं नरेन्द्र नहीं जानते थे। जब उनकी आयु केवल छह वर्ष थी एक दिन वे अपने मित्रों के साथ ‘चड़क’ का मेला देखने गये। नरेन्द्र मेले में से मिट्टी की महादेव की मूर्तियां खरीद कर लौट रहे थे कि उनके दल का एक बालक Continue Reading »
No Commentsabhushan
आभूषणों की निंदा करना हमारा उद्देश्य नहीं है। हम असहयोग का उत्पीड़न सह सकते हैं पर ललनाओं के निर्दय, घातक वाक्बाणों को नहीं ओढ़ सकते। तो भी इतना अवश्य कहेंगे कि इस तृष्णा की पूर्ति के लिए जितना त्याग किया जाता है उसका सदुपयोग करने से महान पद प्राप्त हो Continue Reading »
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जब रजिया के दो-तीन बच्चे होकर मर गये और उम्र ढल चली, तो रामू का प्रेम उससे कुछ कम होने लगा और दूसरे व्याह की धुन सवार हुई। आये दिन रजिया से बकझक होने लगी। रामू एक-न-एक बहाना खोजकर रजिया पर बिगड़ता और उसे मारता। और अन्त को वह नई Continue Reading »
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अँधेरी रात के सन्नाटे में धसान नदी चट्टानों से टकराती हुई ऐसी सुहावनी मालूम होती थी जैसे घुमुर-घुमुर करती हुई चक्कियाँ। नदी के दाहिने तट पर एक टीला है। उस पर एक पुराना दुर्ग बना हुआ है जिसको जंगली वृक्षों ने घेर रखा है। टीले के पूर्व की ओर छोटा-सा Continue Reading »
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“कल होली है।” “होगी।” “क्या तुम न मनाओगी?” “नहीं।” ”नहीं?” ”न ।” ”’क्यों? ” ”क्या बताऊं क्यों?” ”आखिर कुछ सुनूं भी तो ।” ”सुनकर क्या करोगे? ” ”जो करते बनेगा ।” ”तुमसे कुछ भी न बनेगा ।” ”तो भी ।” ”तो भी क्या कहूँ? “क्या तुम नहीं जानते होली या Continue Reading »
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“बिमल, सोचता हूँ मैं वापस चला जाऊं”, प्रोफेसर महेश कुमार ने निराशा भरे स्वर में कहा । मुझे उसके इस सुझाव का कारण पता था । फिर भी जान-बूझकर मैंने प्रश्न किया – “क्यों?” ”कल सूवा में गड़बड़ी हुई है । नैन्दी से कुछ आतंकवादियों ने एयर न्यूज़ीलैंड के विमान Continue Reading »
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रेलगाड़ी के इस डिब्बे में वे चार हैं, जबकि मैं अकेला । वे हट्टे-कट्टे हैं , जबकि मैं कमज़ोर-सा । वे लम्बे-तगड़े हैं, जबकि मैं औसत क़द-काठी का । जल्दबाज़ी में शायद मैं ग़लत डिब्बे में चढ़ गया हूँ । मुझे इस समय यहाँ इन लोगों के बीच नहीं होना Continue Reading »
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