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Hello frnds I am megha..mai apko apni love story btana chahti hu I hope u help me ..mai 11+ me thi and mujhe chutiyan pdi thi school ki nd mai baddi aayi thi apni mma papa ke pas wo baddi rhte the mai bilaspur me Dadi ke pas and mujhe baddi me aake ek ladke ne purpose kiya mujhe pehli njr me usse pyar hogya tha nd mai wha thode din rhi roj milti thi unse phir mai wapis bilaspur aagyi nd hum roj batein krte the and bhut pyar se rhte the PR ek din mujhe PETA LGA ki unki koi or gf bi h mujhe bhut dukh huaa Maine unse pucha unhone meri jhuthi ksm Khali nd tb bi mai unko Jan se Jada pyar krti thi phir WO mujhse wapis vaise lggye bat krne jaise pehle krte the mujhe khte tujse tut GaI meri tu mai Jan se h mrjauga tere bina Maine such manliya or mujhe unse itna pyar hogya ki chahe WO Jo mrji krte mujhe frk ni pdta tha PETA ni kyu phir WO mujhe dhokha pe dhokha dete the and mai sehti rhi PR phir mujhe akal aayi Maine socha ki jb use meri koi prwah ni to mai kyu mru iske piche phir Maine use full ignored kiya mujhe nfrat hogyi thi unse phir Maine bi new bf bnaliya jb unhe PTA chla to gusa kiya unhone mujhe galiya nikali Maine ni dhyan diya kyunki mai apne raste thi WO apne Maine ye sochliya tha phir PTA ni kya huaa unhe mujhe itna love hogya hai ab ki WO mrjayenge mere bina ye khte h WO hr WO kam krte h Jo ek husband krta h apni wife ke lyi PR mai Jada dhyan ni deti kyunki mujhe pta h ke is bar trust kiya unpe to pyar hojauega unse phir mujhe nd phir WO mujhe upr udake niche faink denge WO phir mujhe dhokha dedenge phir mai puri mrjaugi islyi mai unpe Jada dhyan ni deti PR WO khte h megha Mr jauga je mujhe choda mma ksm ye WO aap btao frnds mai unpe trust kru ya ni itna dhokha ke bad ab unhe smjh aaay ki pyar kya h to WO khte h mai unpe trust kru kya mujhe unpe ek bar phir trust krna chahiye ..plZ help me frnds …

Submitted By:- Megha sharma

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तुम फिर कब आओगी । बिना जबाब दिए उसके कदम बढ़ते चले गए ।
हमें अच्छी तरह याद है । जब कालेज के छुट्टीयोँ के दिन पहली बार हमारे गाँव अपने रिश्तेदार के यहाँ आई थी । शहरी होते हुए भी सादा रहन सहन और हाव-भाव । भगवान् की बनाई खुबसूरत गोल चेहरा, नैन नक्श खड़े स्वर्ग की परी जैसी थी । हमारे घर का रास्ता उसके रिश्तेदार के गलियों से होकर गुजरता था । गली से गुजरते वक्त पहली बार जब मैं देखा, देखता रह गया । चिकनी गाल होठ लाल क्या कमाल की थी । भगवान् ने कौन सी मिट्टी लगा के गढ़ा था उसको ।
एक लड़के ने पिछे से टोका, क्या देख रहे हो ।
कुछ नही ! मैं हड़बड़ाते हुए बोला ।
तो चलो गली में क्यों खड़े हो ।
मुझे अंदाज़ा हो गया । यह कुछ नही जान पाया, हम दोनो आगे बढ़ गए ।
मेरे घर से उसके रिश्तेदार की गली वाला दरवाजा दिखाई देता था । जहाँ पर पहले भी महिलाऐं बैठा करती । मैं इसी आशा में कुर्सी लगा कर अपने दरवाजे पर बैठता की उस घर की महिलाओ के साथ वह भी गली वाले दरवाजे पर शाम को बैठेगी ।
वही हुआ जो हम चाहते थे । उसको देखकर मेरे दिल के धड़कन तेज हो गए । मैं उसके बात करने को बेताब होने लगा । संयोग की बात है, वह एक दिन मेरे घर आई । मैं घर पर नही था । वह जैसे जाने के लिए उठी ही थी कि मैं घर पहुंचा । उसको देखकर अचंभित रह गया । बात को बढ़ाने के लिए मैं चाय का पहल किया ।
वह बोली, चाय नाश्ता हो गया, फिर किसी दिन ।
इतना कहकर वह बाहर निकल गई । मैं मन ही मन पछता रहा था कि मैं भी कितना बेवकूफ हूँ, आज उसका इंतजार नही कर सका । शाम को वह अकेले गली में खड़ी पास के पोखर की ओर देख रही थी । पलट कर मेरे घर की ओर देखी, मैं सामने खड़ा था । हल्की मुस्कुराई और मेंरे ओर बढ़ती चली आई ।
मैं एक कुर्सी पर बैठने का इशारा कर पानी लाने चला गया । ग्लास थमाते वक्त उसके हाथो का स्पर्श मेरे तन के तार को झंकृत कर दिया । कुछ पल एक दूसरे को देखते रहे ।
कुर्सी से उठकर बोली, गाँव है, कोई मुझे यहाँ देख लेगा तो इसका मतलब गलत निकालेगा ।
मैं पूछ बैठा, आठ बजे रात को आपके दरवाजे पर मिलते है ।
नही! यह मेरे रिश्तेदार का घर है ।
उस टाइम तो सब घर के काम में व्यस्त रहते है, मैं बोला ।
मैं ठीक आठ बजे उसके रिश्तेदार के गली वाले दरवाजे पर पहुंचा । औरतें घर के काम में मशगूल थी । वह अकेले दरवाजे पर खड़ी थी । शायद मेरे एहसास उसके दिल के कोने में जगह बना रहे थे ।
तुम अकेले खड़ी हो ।
क्यों?पूरे गाँव को लेकर खड़ी रहती, उसने जबाब दिया ।
तुम बहुत सुंदर हो ।
बहुतो के मूँह से सुन चुकी हूँ ।
कितना दिन रहोगी ।
बस कुछ दिन और ——
मैं उसका हाथ अपने हाथो में ले लिया, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो । मैं उसे अपने बाँहो में भरना चाहता था ।
वह पिछे हटते बोली,कोई आ जाएगा तुम जाओ ।
कोई नही आएगा जानू ।
मैं उसे गले से लगा लिया । थोड़ा विरोध के बाद अपनी सहमति दे दी । उसके गर्म रसीले होठो पर मेरे होठ जा टकराए । पाँच मिनट हम एक दूसरे को आलिंगन करते रहे ।
कोई आ रहा है तुम जाओ । पिछे हटते तेज कदमो से आंगन की ओर चली गई ।
उसके छुअन से मेरे नींद चैन उड़ चुके थे ।हम एक-दूसरे से मिलने के मौके तलाशते रहे पर विफल । दो दिन के बाद वह अपने घर चली गई ।
ठीक दो माह बाद डाक द्वारा एक पत्र मिला । मैं आंखे फाड़कर उस पत्र को निहारते रहा । और मारे खुशी के फूला जा रहा था । आज सनम की चिठ्ठी जो आई थी ।
तुम ऐसा नही कर सकती हो मेरे साथ । तुम मेरी हो । आधा पत्र पढ़ते मेरे दिल के अरमा तार-तार हो गए ।

प्रिय प्रिन्स
तुम मेरे साहसी बहादुर साथी हो । तुम टूट नही सकते हो । दुख तो हमे भी हो रहा है कि मैं किसी और की होने जा रही हूँ । दिसंबर में मेरी शादी है । मैं बहुत कोशिश करना चाही, परंतु घरवाले का विरोध का हिम्मत नही हुआ । तुम्हे मेरी जैसी कितनी मिल जाएगी । मैं किसी और की होने जा रही हूँ तो क्या? दिल के एक कोने में तुम्हारे नाम का भी ताउम्र जगह रहेगा । तुम टूट नही सकते हो जानू और तुम्हे मेरी कसम शराब को हाथ लगाए तो ।

तुम्हारी निशा
तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हो । मैं तुम्हे बेवफा भी नही कह सकता । यह मेरे मुहब्बत का तौहीन होगा ।
ऐ खुदा से दुआ है मेरा, तु खुशहाल रहे !
रानी सा हर वक्त कटे, चाहे हम फटेहाल रहे !!
मेरी जान जिस दुनिया में जा रही हो । तुम्हे खुशियाँ ही खुशियाँ नसीब हो ।

Submitted By:- Rakesh Raushan ( मनेर पटना )

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