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आज का हुक्मनामा – 27 मई 2022
सलोक मः ५ ॥ साजन तेरे चरन की होइ रहा सद धूरि ॥ नानक सरणि तुहारीआ पेखउ सदा हजूरि ॥१॥ मः ५ ॥ पतित पुनीत असंख होहि हरि चरणी मनु लाग ॥ अठसठि तीरथ नामु प्रभ जिसु नानक मसतकि भाग ॥२॥ अर्थ : हे सजन मैं सदा तेरे पेरों की खाक बना रहूँ, गुरू नानक जी अरदास करते हैं की मैं तेरी शरण पड़ा रहूँ और तुझे ही अपने अंग-संग देखूं ॥१॥ (विकारों में) गिरे हुए भी बेयंत जीव पवित्र हो जाते हैं अगर उनका मन प्रभु के चरणों में लग जाए, प्रभु का नाम ही अठासठ तीर्थ है, परन्तु, (गुरू नानक जी स्वयं को कहते हैं) हे नानक! (यह उसको मिलता है) जिस के माथे पर भाग्य (लिखें) हैं॥२॥


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आज का हुक्मनामा – 26 मई 2022
सोरठि महला ५ ॥ खोजत खोजत खोजि बीचारिओ राम नामु ततु सारा ॥ किलबिख काटे निमख अराधिआ गुरमुखि पारि उतारा ॥१॥ हरि रसु पीवहु पुरख गिआनी ॥ सुणि सुणि महा त्रिपति मनु पावै साधू अम्रित बानी ॥ रहाउ ॥ मुकति भुगति जुगति सचु पाईऐ सरब सुखा का दाता ॥ अपुने दास कउ भगति दानु देवै पूरन पुरखु बिधाता ॥२॥ स्रवणी सुणीऐ रसना गाईऐ हिरदै धिआईऐ सोई ॥ करण कारण समरथ सुआमी जा ते ब्रिथा न कोई ॥३॥ वडै भागि रतन जनमु पाइआ करहु क्रिपा किरपाला ॥ साधसंगि नानकु गुण गावै सिमरै सदा गोपाला ॥४॥१०॥ अर्थ: हे भाई! बड़ी लंबी खोज करके हम इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि परमात्मा का नाम (-सिमरन करना ही मनुष्य के जीवन की) सब से बड़ी असलियत है। गुरू की श़रण पड़ कर ही हरी-नाम सिमरन से (यह नाम) पलक झपकते ही (सारे) पाप कट देता है, और, (संसार-समुँद्र से) पार कर देता है॥१॥ आत्मिक जीवन की समझ वाले हे मनुष्य! (सदा) परमात्मा का नाम रस पिया कर। (हे भाई!) गुरू की आत्मिक जीवन देने वाली बाणी के द्वारा (परमात्मा का) नाम बार बार सुन कर (मनुष्य का) मन सब से ऊँचा संतोष हासिल कर लेता है ॥ रहाउ ॥ हे भाई! सारे सुखों का देने वाला, सदा कायम रहने वाला परमात्मा अगर मिल जाए, तो यही है विकारों से मुक्ति (का मूल), यही है (आत्मा की) ख़ुराक, यही है जीने का सही ढंग। वह सर्व-व्यापक सिरजनहार प्रभू भक्ति का (यह) दान अपने सेवक को (ही) बख्श़श़ करता है ॥२॥ हे भाई! उस (प्रभू के) ही (नाम) को काँनों से सुनना चाहिए, जीभ से गाना चाहिए, हृदय में अराधना चाहिए, जिस जगत के मूल सब ताकतों के मालिक के दर से कोई जीव ख़ाली-हाथ नहीं जाता ॥३॥ हे कृपाल! बड़ी किस्मत से यह श्रेष्ठ मनुष्या जन्म मिला है (अब) मेहर कर, गोपाल जी! (तेरा सेवक) Continue Reading…


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आज का हुक्मनामा – 25 मई 2022
सलोक ॥ संत उधरण दइआलं आसरं गोपाल कीरतनह ॥ निरमलं संत संगेण ओट नानक परमेसुरह ॥१॥ चंदन चंदु न सरद रुति मूलि न मिटई घांम ॥ सीतलु थीवै नानका जपंदड़ो हरि नामु ॥२॥ पउड़ी ॥ चरन कमल की ओट उधरे सगल जन ॥ सुणि परतापु गोविंद निरभउ भए मन ॥ तोटि न आवै मूलि संचिआ नामु धन ॥ संत जना सिउ संगु पाईऐ वडै पुन ॥ आठ पहर हरि धिआइ हरि जसु नित सुन ॥१७॥ अर्थ: जो संत जन गोपाल प्रभू के कीर्तन को अपने जीवन का सहारा बना लेते हैं, दयाल प्रभू उन संतों को (माया की तपस से) बचा लेता है, उन संतों की संगति करने से पवित्र हो जाते हैं। हे नानक! (तू भी ऐसे गुरमुखों की संगति में रह के) परमेश्वर का पल्ला पकड़।1। चाहे चंदन (का लेप किया) हो चाहे चंद्रमा (की चाँदनी) हो, और चाहे ठंडी ऋतु हो – इनसे मन की तपस बिल्कुल भी समाप्त नहीं हो सकती। हे नानक! प्रभू का नाम सिमरने से ही मनुष्य (का मन) शांत होता है।2। प्रभू के सुंदर चरणों का आसरा ले के सारे जीव (दुनिया की तपस से) बच जाते हैं। गोबिंद की महिमा सुन के (बँदगी वालों के) मन निडर हो जाते हैं। वे प्रभू का नाम-धन इकट्ठा करते हैं और उस धन में कभी घाटा नहीं पड़ता। ऐसे गुरमुखों की संगति बड़े भाग्यों से मिलती है, ये संत जन आठों पहर प्रभू को सिमरते हैं और सदा प्रभू का यश सुनते हैं।17।


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आज का हुक्मनामा – 24 मई 2022
सोरठि महला ९ ॥ इह जगि मीतु न देखिओ कोई ॥ सगल जगतु अपनै सुखि लागिओ दुख मै संगि न होई ॥१॥ रहाउ ॥ दारा मीत पूत सनबंधी सगरे धन सिउ लागे ॥ जब ही निरधन देखिओ नर कउ संगु छाडि सभ भागे ॥१॥ कहंउ कहा यिआ मन बउरे कउ इन सिउ नेहु लगाइओ ॥ दीना नाथ सकल भै भंजन जसु ता को बिसराइओ ॥२॥ सुआन पूछ जिउ भइओ न सूधउ बहुतु जतनु मै कीनउ ॥ नानक लाज बिरद की राखहु नामु तुहारउ लीनउ ॥३॥९॥ अर्थ: हे भाई! इस जगत में कोई (अंत तक साथ निभाने वाला) मित्र (मैंने) नहीं देखा। सारा संसार अपने सुख में ही लगा हुआ है। दुख में (कोई किसी के) साथ (साथी) नहीं बनता ॥१॥ रहाउ ॥ हे भाई! स्त्री, मित्र, पुत्र, रिश्तेदार-यह सारे धन के साथ (ही) प्यार करते हैं। जब ही इन्होंने मनुष्य को कंगाल देखा, (तभी) साथ छोड़ कर भाग जाते हैं ॥१॥ हे भाई! मैं इस पागल मन को क्या समझाऊं ? (इस ने) इन (कच्चे साथियों) के साथ प्यार पाया हुआ है। (जो परमात्मा) गरीबों का रक्षक और सभी डर नाश करने वाला है उस की सिफ़त-सलाह (इस ने) भुलाई हुई है ॥२॥ हे भाई! जैसे कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं होती (इसी तरह इस मन की परमात्मा की याद से लापरवाही हटती नहीं) मैंने बहुत यत्न किया है। हे नानक जी! (कहो – हे प्रभू! अपने) मुढ़-कदीमा के (प्यार वाले) स्वभाव की लाज रखो (मेरी मदद करो, तो ही) मैं आपका नाम जप सकता हूँ ॥३॥९॥


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आज का हुक्मनामा – 23 मई 2022
वडहंसु महला १ ॥ बाबा आइआ है उठि चलणा इहु जगु झूठु पसारोवा ॥ सचा घरु सचड़ै सेवीऐ सचु खरा सचिआरोवा ॥ कूड़ि लबि जां थाइ न पासी अगै लहै न ठाओ ॥ अंतरि आउ न बैसहु कहीऐ जिउ सुंञै घरि काओ ॥ जमणु मरणु वडा वेछोड़ा बिनसै जगु सबाए ॥ लबि धंधै माइआ जगतु भुलाइआ कालु खड़ा रूआए ॥१॥ बाबा आवहु भाईहो गलि मिलह मिलि मिलि देह आसीसा हे ॥ बाबा सचड़ा मेलु न चुकई प्रीतम कीआ देह असीसा हे ॥ आसीसा देवहो भगति करेवहो मिलिआ का किआ मेलो ॥ इकि भूले नावहु थेहहु थावहु गुर सबदी सचु खेलो ॥ जम मारगि नही जाणा सबदि समाणा जुगि जुगि साचै वेसे ॥ साजन सैण मिलहु संजोगी गुर मिलि खोले फासे ॥२॥ बाबा नांगड़ा आइआ जग महि दुखु सुखु लेखु लिखाइआ ॥ लिखिअड़ा साहा ना टलै जेहड़ा पुरबि कमाइआ ॥ बहि साचै लिखिआ अम्रितु बिखिआ जितु लाइआ तितु लागा ॥ कामणिआरी कामण पाए बहु रंगी गलि तागा ॥ होछी मति भइआ मनु होछा गुड़ु सा मखी खाइआ ॥ ना मरजादु आइआ कलि भीतरि नांगो बंधि चलाइआ ॥३॥ बाबा रोवहु जे किसै रोवणा जानीअड़ा बंधि पठाइआ है ॥ लिखिअड़ा लेखु न मेटीऐ दरि हाकारड़ा आइआ है ॥ हाकारा आइआ जा तिसु भाइआ रुंने रोवणहारे ॥ पुत भाई भातीजे रोवहि प्रीतम अति पिआरे ॥ भै रोवै गुण सारि समाले को मरै न मुइआ नाले ॥ नानक जुगि जुगि जाण सिजाणा रोवहि सचु समाले ॥४॥५॥ हे भाई! (जगत में जो भी जीव जनम ले के) आया है उसने (आखिर यहाँ से) कूच कर जाना है (किसी ने यहाँ सदा बैठे नहीं रहना) ये जगत है ही नाशवंत पसारा। यदि सदा स्थिर रहने वाले परमात्मा का सिमरन करें तो सदा-स्थिर रहने वाला ठिकाना मिल जाता है। जो मनुष्य सदा स्थिर प्रभू को सिमरता है वह पवित्र जीवन वाला हो जाता है, वह सदा-स्थिर प्रभू के Continue Reading…


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आज का हुक्मनामा – 22 मई 2022
सोरठि महला ५ ॥ मेरा सतिगुरु रखवाला होआ ॥ धारि क्रिपा प्रभ हाथ दे राखिआ हरि गोविदु नवा निरोआ ॥१॥ रहाउ ॥ तापु गइआ प्रभि आपि मिटाइआ जन की लाज रखाई ॥ साधसंगति ते सभ फल पाए सतिगुर कै बलि जांई ॥१॥ हलतु पलतु प्रभ दोवै सवारे हमरा गुणु अवगुणु न बीचारिआ ॥ अटल बचनु नानक गुर तेरा सफल करु मसतकि धारिआ ॥२॥२१॥४९॥ अर्थ :-हे भाई ! मेरा गुरु (मेरा) सहाई बना है, (गुरु की शरण की बरकत के साथ) भगवान ने कृपा कर के (अपने) हाथ दे के (बालक हरि गोबिंद को) बचा लिया है, (अब बालक) हरि गोबिंद बिलकुल राजी-बाजी हो गया है।1। (हे भाई ! बालक हरि गोबिंद का) ताप उतर गया है, भगवान ने आप उतारा है, भगवान ने अपने सेवक की इज्ज़त रख ली है । हे भाई ! गुरु की संगत से (मैंने) सारे फल प्राप्त कीये हैं, मैं (सदा) गुरु से (ही) कुरबान जाता हूँ।1। (हे भाई जो भी मनुख भगवान का पला पकड़े रखता है, उस का) यह लोक और परलोक दोनो ही परमात्मा सवार देता है, हम जीवों का कोई गुण या औगुण परमात्मा चित् में नहीं रखता । हे नानक ! (बोल-) हे गुरु ! तेरा (यह) बचन कभी टलने वाला नहीं (कि परमात्मा ही जीव का लोक परलोक में राखा है) । हे गुरु ! तूं अपना बरकत वाला हाथ (हम जीवों के) माथे पर रखता हैं।2।21।49।


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आज का हुक्मनामा – 21 मई 2022
वडहंसु महला ३ ॥ इहु सरीरु जजरी है इस नो जरु पहुचै आए ॥ गुरि राखे से उबरे होरु मरि जमै आवै जाए ॥ होरि मरि जमहि आवहि जावहि अंति गए पछुतावहि बिनु नावै सुखु न होई ॥ ऐथै कमावै सो फलु पावै मनमुखि है पति खोई ॥ जम पुरि घोर अंधारु महा गुबारु ना तिथै भैण न भाई ॥ इहु सरीरु जजरी है इस नो जरु पहुचै आई ॥१॥ अर्थ : यह सरीर नास हो जाने वाला है, इस को बुढ़ापा आ दबाता है। जिनकी गुरु ने रक्षा की, वह (मोह में गर्क होने से)बच जाते हैं पर और जनम मरण में रहते हैं। और अंत समय पछताते हैं; हरी नाम के बिना आत्मिक जीवन का सुख नहीं मिलता। इस लोक में जीव जो करनी कमाता है वोही फल भोगता है। अपने मन के पीछे चलने वाला (प्रभु दरबार में) अपनी इज्जत गवा लेता है। (उनके लिए) जम राज की पूरी में भी घोर अँधेरा, घोर अँधेरा ही बना रहता है, उधर बहिन या भाई कोई सहायता नहीं कर सकता। यह सरीर पुराना हो जाने वाला है, इस को भुदापा (जरूर) आ जाता है॥1॥


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