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जानिए शास्त्रों में पितरों का श्राद्ध कर्म करने के बारे में क्या लिखा है, क्या मिलता है फल


सर्व पितृ अमावस्या दिवंगत पितरों के प्रति श्रद्धा-सुमन एवं कृतज्ञता ज्ञापन से भरा विशिष्ट पर्व है। श्राद्ध का अर्थ श्रद्धापूर्ण व्यवहार एवं तर्पण का अर्थ तृप्त करना है। इस तरह श्राद्ध-तर्पण का अभिप्राय दिवंगत अथवा जीवित पितरों को तृप्त करने की श्रद्धा पूर्वक प्रक्रिया है। पितृ अमावस्या का समूचा कर्मकाण्ड इसी प्रयोजन से किया जाता है। साथ ही इसमें यह भाव-प्रेरणा भी निहित रहती है कि हम पितरों, महापुरुषों एवं महान पूर्वजों के आदर्शों, निर्देशों एवं श्रेष्ठ मार्ग का अनुसरण कर वैसे ही महान बनने का प्रयास करें।

ऋषियों के मतानुसार, मृत्यु के उपरांत जीवात्मा चंद्रलोक की ओर जाता है और वहां से और ऊंचा उठकर पितृ लोक में पहुंचता है। इन मृतात्माओं को अपने नियत स्थान पर पहुंचने के लिए शक्ति मिले, इस निमित्त मरणोत्तर, पिण्डदान और श्राद्ध की व्यवस्था की गई है। श्राद्ध में पितरों के नाम पर ब्रह्मभोज (ज्ञान-प्रसाद का वितरण) भी किया जाता है। इसके पुण्य फल से भी पितरों का संतुष्ट होना माना गया है।

श्राद्ध करने से मिलते हैं ये लाभ, जानें श्राद्ध का महत्व

शास्त्रों का स्पष्ट मत है कि जो व्यक्ति श्राद्ध करता है, वह पितरों के आशीर्वाद प्राप्त करता है और आयु, बल, पुत्र, यश, सुख, वैभव और धन-धान्य को प्राप्त होता है। इसी निमित्त आश्विन मास के कृष्ण पक्ष भर प्रतिदिन नियम पूर्वक स्नान करके पितरों का तर्पण किया जाता है और जो दिन पितरों की मृत्यु का होता है, उस दिन यथा शक्ति श्रेष्ठ कार्यों के लिए व सत्प्रवृत्ति संवर्धन के लिए दान दिया जाता है।

शास्त्रों में श्राद्ध कर्म की कल्याणकारी महिमा भरी पड़ी है। महर्षि सुमन्तु के मत में ‘संसार में श्राद्ध से बढ़कर और कल्याणप्रद मार्ग नहीं है। अतः बुद्धिमान् मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए।’
गरुड़ पुराण में ऋषि लिखते हैं कि ‘पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, धन और धान्य देते हैं।’

मार्कण्डेय पुराण में ऋषि के अनुसार ‘श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्त्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।’
महाभारत के अनुसार ‘पितरों की भक्ति करने से पुष्टि, आयु, वीर्य तथा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।’
श्राद्ध के व्यापक प्रभाव का उल्लेख करते हुए ऋषिगण आगे लिखते हैं- ‘जो मनुष्य अपने वैभव के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करता है, वह साक्षात् ब्रह्म से लेकर तृण पर्यन्त समस्त प्राणियों को तृप्त करता है। श्रद्धापूर्वक विधि-विधान से श्राद्ध करने वाला मनुष्य ब्रह्म, रुद्र, इन्द्र, अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, विश्वदेव, पितृगण, मनुष्यगण, पशुगण, समस्त भूतगण तथा सर्पगण को भी संतुष्ट करता हुआ संपूर्ण जगत को संतुष्ट करता है।’
विष्णु पुराण में इसी प्रकार के भाव व्यक्त किये गये हैं। हेमाद्रि नागरखण्ड के अनुसार ‘जो मनुष्य एक दिन भी श्राद्ध करता है, उसके पितृगण वर्षभर के लिए संतुष्ट हो जाते हैं, यह सुनिश्चित है।’

श्राद्ध के संदर्भ में व्यक्त उपर्युक्त उद्गार किसी भी तरह से अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर ऋषियों की सूक्ष्म प्रज्ञा द्वारा प्रामाणित व पुष्ट हैं। दिवंगत जीवात्मा या पितर को श्राद्धकर्म से कुछ लाभ होता है या नहीं, इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि होता है और अवश्य होता है। इस विश्व-ब्रह्माण्ड का प्रत्येक जीव, प्रत्येक कण, प्रत्येक परमाणु एवं घटक एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। संसार के किसी भी कोने में अनीति, अत्याचार, युद्ध, आतंक आदि हो, तो सुदूर निवासियों के मन में भी उद्वेग उत्पन्न होता है। छोटा-सा यज्ञ करने पर भी उसकी दिव्य सुगंध, सुवास एवं भावना समस्त वातावरण एवं जीवधारियों को लाभ पहुँचता है। इसी प्रकार कृतज्ञता की भावना से ओतप्रोत श्राद्धकर्म समस्त प्राणियों में शांतिमयी भावनाओं का संचार करता है। सद्भावना की तरंगें जीवित-मृत सबको प्रभावित करती हैं। किन्तु अधिकांश भाग उन्हीं को पहुंचता है, जिनके लिए श्राद्ध विशेष रूप से किया जाता है। श्राद्ध से पितृगण संतुष्ट होते हुए अपना आशीर्वाद देते हैं, जिससे श्रद्धालु का कल्याण होता है।

जानिए शास्त्रों में पितरों का श्राद्ध कर्म करने के बारे में क्या लिखा है, क्या मिलता है फल

सर्व पितृ अमावस्या दिवंगत पितरों के प्रति श्रद्धा-सुमन एवं कृतज्ञता ज्ञापन से भरा विशिष्ट पर्व है। श्राद्ध का अर्थ श्रद्धापूर्ण व्यवहार एवं तर्पण का अर्थ तृप्त करना है। इस तरह श्राद्ध-तर्पण का अभिप्राय दिवंगत अथवा जीवित पितरों को तृप्त करने की श्रद्धा पूर्वक प्रक्रिया है। पितृ अमावस्या का समूचा कर्मकाण्ड इसी प्रयोजन से किया जाता है। साथ ही इसमें यह भाव-प्रेरणा भी निहित रहती है कि हम पितरों, महापुरुषों एवं महान पूर्वजों के आदर्शों, निर्देशों...

एवं श्रेष्ठ मार्ग का अनुसरण कर वैसे ही महान बनने का प्रयास करें।

ऋषियों के मतानुसार, मृत्यु के उपरांत जीवात्मा चंद्रलोक की ओर जाता है और वहां से और ऊंचा उठकर पितृ लोक में पहुंचता है। इन मृतात्माओं को अपने नियत स्थान पर पहुंचने के लिए शक्ति मिले, इस निमित्त मरणोत्तर, पिण्डदान और श्राद्ध की व्यवस्था की गई है। श्राद्ध में पितरों के नाम पर ब्रह्मभोज (ज्ञान-प्रसाद का वितरण) भी किया जाता है। इसके पुण्य फल से भी पितरों का संतुष्ट होना माना गया है।

श्राद्ध करने से मिलते हैं ये लाभ, जानें श्राद्ध का महत्व

शास्त्रों का स्पष्ट मत है कि जो व्यक्ति श्राद्ध करता है, वह पितरों के आशीर्वाद प्राप्त करता है और आयु, बल, पुत्र, यश, सुख, वैभव और धन-धान्य को प्राप्त होता है। इसी निमित्त आश्विन मास के कृष्ण पक्ष भर प्रतिदिन नियम पूर्वक स्नान करके पितरों का तर्पण किया जाता है और जो दिन पितरों की मृत्यु का होता है, उस दिन यथा शक्ति श्रेष्ठ कार्यों के लिए व सत्प्रवृत्ति संवर्धन के लिए दान दिया जाता है।

शास्त्रों में श्राद्ध कर्म की कल्याणकारी महिमा भरी पड़ी है। महर्षि सुमन्तु के मत में ‘संसार में श्राद्ध से बढ़कर और कल्याणप्रद मार्ग नहीं है। अतः बुद्धिमान् मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए।’
गरुड़ पुराण में ऋषि लिखते हैं कि ‘पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, धन और धान्य देते हैं।’

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मार्कण्डेय पुराण में ऋषि के अनुसार ‘श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्त्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।’
महाभारत के अनुसार ‘पितरों की भक्ति करने से पुष्टि, आयु, वीर्य तथा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।’
श्राद्ध के व्यापक प्रभाव का उल्लेख करते हुए ऋषिगण आगे लिखते हैं- ‘जो मनुष्य अपने वैभव के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करता है, वह साक्षात् ब्रह्म से लेकर तृण पर्यन्त समस्त प्राणियों को तृप्त करता है। श्रद्धापूर्वक विधि-विधान से श्राद्ध करने वाला मनुष्य ब्रह्म, रुद्र, इन्द्र, अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, विश्वदेव, पितृगण, मनुष्यगण, पशुगण, समस्त भूतगण तथा सर्पगण को भी संतुष्ट करता हुआ संपूर्ण जगत को संतुष्ट करता है।’
विष्णु पुराण में इसी प्रकार के भाव व्यक्त किये गये हैं। हेमाद्रि नागरखण्ड के अनुसार ‘जो मनुष्य एक दिन भी श्राद्ध करता है, उसके पितृगण वर्षभर के लिए संतुष्ट हो जाते हैं, यह सुनिश्चित है।’

श्राद्ध के संदर्भ में व्यक्त उपर्युक्त उद्गार किसी भी तरह से अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर ऋषियों की सूक्ष्म प्रज्ञा द्वारा प्रामाणित व पुष्ट हैं। दिवंगत जीवात्मा या पितर को श्राद्धकर्म से कुछ लाभ होता है या नहीं, इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि होता है और अवश्य होता है। इस विश्व-ब्रह्माण्ड का प्रत्येक जीव, प्रत्येक कण, प्रत्येक परमाणु एवं घटक एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। संसार के किसी भी कोने में अनीति, अत्याचार, युद्ध, आतंक आदि हो, तो सुदूर निवासियों के मन में भी उद्वेग उत्पन्न होता है। छोटा-सा यज्ञ करने पर भी उसकी दिव्य सुगंध, सुवास एवं भावना समस्त वातावरण एवं जीवधारियों को लाभ पहुँचता है। इसी प्रकार कृतज्ञता की भावना से ओतप्रोत श्राद्धकर्म समस्त प्राणियों में शांतिमयी भावनाओं का संचार करता है। सद्भावना की तरंगें जीवित-मृत सबको प्रभावित करती हैं। किन्तु अधिकांश भाग उन्हीं को पहुंचता है, जिनके लिए श्राद्ध विशेष रूप से किया जाता है। श्राद्ध से पितृगण संतुष्ट होते हुए अपना आशीर्वाद देते हैं, जिससे श्रद्धालु का कल्याण होता है।

पितृ पक्ष में पंचबली का क्या है महत्व, आखिर कौआ, कुत्ता और गाय को क्यों खिलाया जाता है श्राद्ध का भोजन

पितृपक्ष के साथ पितरों का विशेष संबंध होने के कारण शास्त्रों में पितृपक्ष में श्राद्ध करने की विशेष महिमा बताई गई है। महर्षि जाबाल के शब्दों में- ‘पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पुत्र, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य और अभिलाषित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।’

अतः पितरों की संतुष्टि एवं अपने कल्याण के उद्देश्य से सभी विचारशील मनुष्यों को श्राद्ध तर्पण में अवश्य ही भावपूर्ण भागीदारी निभानी चाहिए। इसमें जहाँ पितरों की भावनात्मक तृप्ति एवं आत्मिक शांति का पुण्य प्रयोजन निहित है, वहीं श्राद्धकर्त्ता की भी सर्वांगीण स्वार्थ सिद्धि एवं कल्याण का यह एक सुअवसर है।

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