Hindi Kahaniya - Kids Stories, Timepaas Stories

दौलत

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लगभग दस साल का अख़बार बेचने वाला बालक एक मकान का गेट बजा रहा है।(उस दिन अखबार नहीं छपा होगा) मालकिन - बाहर आकर पूछी "क्या है ? " बालक - "आंटी जी क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं ?" मालकिन - नहीं, हमें नहीं करवाना।" बालक - हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में.. "प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा।" मालकिन - द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा ?" बालक - पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना।" मालकिन- ओह !! आ जाओ अच्छे से काम करना..! (लगता है बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ..मालकिन बुदबुदायी।) मालकिन- ऐ लड़के..! पहले खाना खा ले, फिर काम करना। बालक -नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना। मालकिन - ठीक है ! कहकर अपने काम में लग गयी। बालक - एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई… Continue Reading

Daachi

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काट* 'पी सिकंदर' के मुसलमान जाट बाक़र को अपने माल की ओर लालच भरी निगाहों से तकते देखकर चौधरी नंदू पेड़ की छाँह में बैठे-बैठे अपनी ऊंची घरघराती आवाज़ में ललकार उठा, "रे-रे अठे के करे है?*" और उसकी छह फुट लंबी सुगठित देह, जो वृक्ष के तने के साथ आराम कर रही थी, तन गई और बटन टूटे होने का कारण, मोटी खादी के कुर्ते से उसका विशाल सीना और उसकी मज़बूत बाहें दिखाई देने लगीं। बाक़र तनिक समीप आ गया। गर्द से भरी हुई छोटी-नुकीली दाढ़ी और शरअई मूँछों के ऊपर गढ़ों में धंसी हुई दो आंखों में पल भर के लिए चमक पैदा हुई और ज़रा मुस्कराकर उसने कहा - "डाची देख रहा था चौधरी, कैसी ख़ूबसूरत और जवान है, देखकर आँखों की भूख मिटती है।" अपने माल की प्रशंसा सुनकर चौधरी नंदू का तनाव कुछ कम हुआ, प्रसन्न होकर बोला, 'किसी साँड?' "वह, परली तरफ़ से… Continue Reading

Major Chaudary Ki Vaapsi

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किसी की टाँग टूट जाती है, तो साधारणतया उसे बधाई का पात्र नहीं माना जाता। लेकिन मेजर चौधरी जब छह सप्ताह अस्पताल में काटकर बैसाखियों के सहारे लडख़ड़ाते हुए बाहर निकले, तो बाहर निकलकर उन्होंने मिज़ाजपुर्सी के लिए आए अफसरों को बताया कि उनकी चार सप्ताह की 'वारलीव' के साथ उन्हें छह सप्ताह की 'कम्पैशनेट लीव' भी मिली है, और उसके बाद ही शायद कुछ और छुट्टी के अनंतर उन्हें सैनिक नौकरी से छुटकारा मिल जाएगा, तब सुननेवालों के मन में अवश्य ही ईष्र्या की लहर दौड़ गई थी क्योंकि मोकोक्चङ् यों सब-डिवीजन का केन्द्र क्यों न हो, वैसे वह नगा पार्वत्य जंगलों का ही एक हिस्सा था, और जोंक, दलदल, मच्छर, चूती छतें, कीचड़ फर्श, पीने को उबाला जाने पर भी गँदला पानी और खाने को पानी में भिगोकर ताजा किये गए सूखे आलू-प्याज- ये सब चीज़ें ऐसी नहीं हैं कि दूसरों के सुख-दु:ख के प्रति सहज औदार्य की… Continue Reading

Padma Aur Lilly

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1) पद्मा के चन्द्र-मुख पर षोडश कला की शुभ्र चंद्रिका अम्लान खिल रही है। एकांत कुंज की कली-सी प्रणय के वासंती मलयस्पर्श से हिल उठती,विकास के लिए व्याकुल हो रही है। पद्मा की प्रतिभा की प्रशंसा सुनकर उसके पिता ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट पंडित रामेश्वरजी शुक्ल उसके उज्ज्वल भविष्य पर अनेक प्रकार की कल्पनाएँ किया करते हैं। योग्य वर के अभाव से उसका विवाह अब तक रोक रखा है। मैट्रिक परीक्षा में पद्मा का सूबे में पहला स्थान आया था। उसे वृत्ति मिली थी। पत्नी को योग्य वर न मिलने के कारण विवाह रुका हुआ है, शुक्लजी समझा देते हैं। साल-भर से कन्या को देखकर माता भविष्य-शंका से काँप उठती हैं। पद्मा काशी विश्वविद्यालय के कला-विभाग में दूसरे साल की छात्रा है। गर्मियों की छुट्टी है, इलाहाबाद घर आई हुई है। अबके पद्मा का उभार, उसका रूप-रंग, उसकी चितवन-चलन-कौशल-वार्तालाप पहले से सभी बदल गए हैं। उसके हृदय में अपनी कल्पना से कोमल… Continue Reading

Lautnaa

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समुद्र का रंग आकाश जैसा था । वह पानी में तैर रही थी । छप्-छप्, छप्-छप् । उसे तैरना कब आया ? उसने तो तैरना कभी नहीं सीखा । फिर यह क्या जादू था ? लहरें उसे गोद में उठाए हुए थीं । एक लहर उसे दूसरी लहर की गोद में सौंप रही थी । दूसरी लहर उसे तीसरी लहर के हवाले कर रही थी । सामने, पीछे, दाएँ, बाएँ दूर तक फैला समुद्र था । समुद्र-ही समुद्र। एक अंतहीन नीला विस्तार । "सिस्टर , रोगी का ब्लड-प्रेशर चेक करो ।" पास ही कहीं से आता हुआ एक भारी स्वर । "डाक्टर, पेशेंट का ब्लड-प्रेशर बहुत 'लो' है ।" "सिस्टर, नब्ज़ जाँचो ।" "नब्ज़ बेहद धीमी चल रही है, सर ।" लहरें नेहा को समुद्र की अतल गहराइयों में लिए जा रही हैं । वह लहरों पर सवार हो कर नीचे जाती जा रही है । नीचे, और नीचे ।… Continue Reading

Ganeshi Ki Katha

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कहानी की शुरुआत कैसे की जानी चाहिए ? मैं इस कहानी की शुरुआत 'वंस अपान अ टाइम, देयर लिव्ड अ पर्सन नेम्ड गनेशी' वाले अंदाज़ में कर सकता हूँ । या मैं कहानी की शुरुआत तिरछे अक्षरों ( इटैलिक्स ) में लिखे कुछ धमाकेदार वाक्यों से कर सकता हूँ । मसलन -- "नींद और जागने की सीमा-रेखा पर स्थित है यह कहानी । अंत और शुरुआत के बीच की संधि है यह कहानी । ढलती हुई शाम और रात के बीच एक ऐसा समय आता है जब धरती कुछ कहना चाहती है , आकाश कुछ सुनना चाहता है । वही कथन है गनेशी की यह कहानी ।" या मैं कहानी के शुरू में ही नींद और सपनों का 'हेडी कॉकटेल' बना कर पाठकों को पिला सकता हूँ जिसे पीते ही पाठक नशे में आ जाएँ । मसलन -- "कुछ कहानियाँ कहानियाँ नहीं होतीं । अधमिटे अक्षर होते हैं । अस्फुट… Continue Reading

Raspriya

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धूल में पड़े कीमती पत्थर को देख कर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई - अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया की मुँह से निकल पड़ा - अपरुप-रुप! ...खेतों, मैदानों, बाग-बगीचों और गाय-बैलों के बीच चरवाहा मोहना की सुंदरता! मिरदंगिया की क्षीण-ज्योति आँखें सजल हो गईं। मोहना ने मुस्करा कर पूछा, 'तुम्हारी उँगली तो रसपिरिया बजाते टेढ़ी हो गई है, है न?' 'ऐ!' - बूढ़े मिरदंगिया ने चौंकते हुए कहा, 'रसपिरिया? ...हाँ ...नहीं। तुमने कैसे ...तुमने कहाँ सुना बे...?' 'बेटा' कहते-कहते रुक गया। ...परमानपुर में उस बार एक ब्राह्मण के लड़के को उसने प्यार से 'बेटा' कह दिया था। सारे गाँव के लड़कों ने उसे घेर कर मारपीट की तैयारी की थी - 'बहरदार होकर ब्राह्मण के बच्चे को बेटा कहेगा? मारो साले बुड्ढे को घेर कर! ...मृदंग फोड़ दो।' मिरदंगिया ने हँस कर कहा था, 'अच्छा, इस बार माफ कर दो सरकार! अब… Continue Reading

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