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हनुमान जी को कैसे मिला चिरंजीवी होने का आशीर्वाद, पढ़े रोचक कथा


मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सर्वोत्तम सेवक, सखा और भक्त श्री हनुमान सद्गुणों के भंडार हैं। इनकी पूजा पूरे भारत और दुनिया के अनेक देशों में की जाती है। श्री हनुमान के परम पराक्रमी सेवा मूर्ति स्वरूप से तो सभी परिचित हैं लेकिन वह ज्ञानियों में भी अग्रगण्य हैं। वह अतुलित बल के स्वामी हैं। उनके अंग वज्र के समान कठोर एवं शक्तिशाली हैं। उन्हें ‘वज्रांग’ नाम दिया गया जो आम बोलचाल में ‘बजरंग’ बन गया। बजरंग बली केवल गदाधारी महाबलि ही नहीं बल्कि विलक्षण और बहुआयामी मानसिक और प्रखर बौद्धिक गुणों के अद्भुत धनी भी हैं। राम काज अर्थात अच्छे कार्य के लिए वह सदैव तत्पर रहते थे। वह राम सेवा अर्थात सात्विक सेवा के शिखर पुरुष ही नहीं थे बल्कि अनंत आयामी व्यक्तित्व विकास का महाआकाश है।
विवेक, ज्ञान, बल, पराक्रम, संयम, सेवा, समर्पण, नेतृत्व, सम्पन्नता आदि विलक्षण गुणों के धनी होने के बावजूद उनमें रत्ती भर अहंकार नहीं था। हनुमान सामाजिक समन्वय और विकास के अग्रदूत हैं। वह योद्धा के रूप में पवन गति के स्वामी हैं बल्कि वह सुशासित राम राज्य के पुरोधा और कुल पुरोहित भी हैं। मान्यता है कि पवन पुत्र हनुमान जी का जन्म मंगलवार के दिन हुआ था जिस कारण मंगलवार के दिन उनकी विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है।

चिरंजीवी हनुमान को पवन पुत्र कहा गया है। एक बार हनुमान जी को सुलाकर माता अंजनी गृह कार्य में व्यस्त हो गईं। तभी हनुमान जी की नींद खुल गई तथा भूख से...

व्याकुल हो सूर्य को मीठा फल समझकर उन्होंने उसे अपने मुख में भर लिया। उस समय ग्रहण चल रहा था। सूर्य की यह गति भांपते हुए राहू ने देवराज इंद्र के पास जाकर उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया। तब देवराज इंद्र ने देखा कि छोटे से हनुमान सूर्य को अपने मुख में रख कर खेल रहे हैं और सारा जगत त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा है।
उसी समय हनुमान जी की दृष्टि इंद्र की ओर गई और उसे भी फल समझकर खाने लगे। इंद्र ने हनुमान जी को अपनी ओर आता देख कर उन पर वज्र से प्रहार किया।

वज्र के प्रहार से सूर्य हनुमान जी के मुख से आजाद हो गए और हनुमान जी मूर्च्छित होकर गिर पड़े। तभी वायु देव ने वायु की गति रोक दी जिस कारण सारे जगत में वायु संचार बंद हो गया और सभी जीव मृत्यु को प्राप्त होने लगे।

देवराज इंद्र समेत सभी देवता तब ब्रह्मा जी के पास गए। तत्पश्चात ब्रह्मा सहित सभी देवताओं ने वायु देव के पास जाकर उनसे विनती की कि वायु का संचार प्रारंभ करें तथा सभी हनुमान जी को बल, बुद्धि और चिरंजीवी होने का आशीर्वाद प्रदान करें। हनुमान जी की मूर्च्छा समाप्त हुई और सृष्टि में नवसंचार होने से मानव सहित सभी जीवों की रक्षा हुई।

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